सतनाम पंथ या सतनामी समाज एक धार्मिक संप्रदाय है। इसे मनाने वालो को सतनामी कहा जाता है। इसकी स्थापना वर्तमान छत्तीसगढ़ में 1820 के दशक में गुरु घासीदास द्वारा की गई थी।
सतनाम पंथ के प्रचार की सुरुआत कब हुई ?
सतनाम पंथ के प्रचार के शुभारंभ संबंधित कोई लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। चुंकि गुरु घासीदास के संबंध में लेखनी कार्य प्रथम बार चिशोल्म द्वारा वर्ष 1862 में किया गया वह भी अनुमानित और जनश्रुति आधारित ही था ऐसा माना जा सकता है।
ऐसा माना जाता है कि गुरु घासीदास ने गिरौदपुरी में 1793 में जैतखाम के स्थापना करते हुए सतनाम धर्म की स्थापना और प्रचार का शुभारंभ किया।
जैतखाम :
जैतखाम सतनामी पंथ के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण है जो उनके संप्रदाय का प्रतिक है। जैतखाम की ऊंचाई 21 हाथ होनी चाहिए। इसमें सरई या साजा की लकड़ी प्रयुक्त होती है। जैतखाम में लगे ध्वजा का रंग स्वेत होता हैं। ध्वजा का आकार आयताकार एवं ध्वजा का क्षेत्रफल सवा मीटर होता है। ध्वज के लिए बांस के डंडे का प्रयोग किया जाता है जिसमे पांच गठान होते है। जैतखाम में 3 हुक होते है।
सतनाम पंथ संबंधित प्रमुख तीर्थ स्थल :
- गिरौदपुरी धाम
- तेलासी धाम
- भंडारपुरीधाम
- चटुवापुरी धाम
- कुआँ बोड़सरा
- बाराडेरा
- चक्रवाय ( नवागढ़ )
- खपरीपुरी धाम
- पचरी धाम
- बोड़सरा धाम (बिलासपुर)
- पताढ़ी धाम (कोरबा)
- अमरटापू धाम (मुंगेली)
- सेतगंगा धाम (मुंगेली)
- लालपुर धाम (मुंगेली)
- गिरौदपुरी, धाम फागुन पंचमी सप्तमी मेला प्रतिवर्ष
- भंडारपुरी, गुरु दर्शन मेला क्वार शुक्ल पक्ष एकादशी
- तेलासीपुरी, आषाढ़ पुन्नी मेला क्वार दशमी गुरु दर्शन
- खण्डुवा, क्वार दशमी गुरु दर्शन मेला
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Source :
Guru Ghasidas Aur Satanaami Aandolan Ke Aitihasik Sakshy