कुम्भ मेला (Kumbh Mela) - इतिहास और वर्तमान


कुम्भ मेला पौष मास की पूर्णिमा को आयोजित होने वाला हिन्दू धर्म का एक महत्त्वपूर्ण पर्व है। मेला प्रत्येक तीन वर्षो के बाद नासिक, इलाहाबाद, उज्जैन और हरिद्वार में बारी-बारी से मनाया जाता है। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष में इस पर्व का आयोजन होता है। इलाहाबाद में संगम के तट पर होने वाला आयोजन सबसे भव्य और पवित्र माना जाता है। कुम्भ मेले में करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु सम्मिलित होते है। ऐसी मान्यता है कि संगम के पवित्र जल में स्नान करने से आत्मा शुद्ध हो जाती है।


धार्मिक मान्यता / पौराणिक कथा :

पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के बाद राक्षसों और देवताओं में जब अमृत के लिए लड़ाई हो रही थी तब भगवान विष्णु ने एक 'मोहिनी' का रूप लिया और राक्षसों से अमृत को जब्त कर लिया। भगवान विष्णु ने गरुड़ को अमृत पारित कर दिया, और अंत में राक्षसों और गरुड़ के संघर्ष में कीमती अमृत की कुछ बूंदें इलाहाबाद, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन में गिर गई। तब से प्रत्येक 12 साल में इन सभी स्थानों में 'कुम्भ मेला' आयोजित किया जाता है।


अर्द्ध कुम्भ और माघ मेला :

हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्द्धकुंभ होता है। अर्द्ध या आधा कुम्भ, प्रत्येक छह वर्षो में संगम के तट पर आयोजित किया जाता है। माघ मेला संगम पर आयोजित एक वार्षिक समारोह है।