अरावली पर्वतमाला भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, जिसका निर्माण लगभग 1500–2500 मिलियन वर्ष पूर्व प्रोटेरोज़ोइक युग (Proterozoic Eon) में हुआ था। यह गुजरात के पालनपुर से शुरू होकर राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली तक लगभग 800 किलोमीटर में फैली हुई है। भूवैज्ञानिक दृष्टि से यह पर्वतमाला हिमालय से भी पुरानी है, लेकिन आधुनिक भारत में इसे उतनी ही तेजी से नष्ट भी किया जा रहा है।
अरावली को केवल एक भौगोलिक संरचना मानना सही नहीं होगा, यह उत्तर-पश्चिम भारत के जलवायु, जल संसाधन, जैव विविधता और मानव जीवन के लिए एक आधार स्तंभ है। इसके कमजोर होने का अर्थ है — रेगिस्तान का विस्तार, जल संकट और पर्यावरणीय असंतुलन।
1. मरुस्थलीकरण रोकने में अरावली की निर्णायक भूमिका
अरावली पर्वतमाला थार मरुस्थल और गंगा-यमुना के उपजाऊ मैदानों के बीच प्राकृतिक अवरोध (Natural Barrier) के रूप में कार्य करती है।
वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार:
अरावली रेतीली हवाओं की गति को कम करती है
पश्चिमी राजस्थान से उड़ने वाली रेत को पूर्व की ओर फैलने से रोकती है
हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली को मरुस्थलीकरण से बचाती है
यदि अरावली का क्षरण इसी गति से चलता रहा, तो थार मरुस्थल का विस्तार दिल्ली-NCR तक पहुँचना कोई कल्पना नहीं, बल्कि वैज्ञानिक संभावना है।
2. जल संरक्षण और भूजल पुनर्भरण (Groundwater Recharge)
अरावली की चट्टानें वर्षा जल को रोककर धीरे-धीरे जमीन में समाहित करती हैं। इससे:
भूजल स्तर बढ़ता है
कुएँ, बावड़ियाँ और झीलें जीवित रहती हैं
सूखे क्षेत्रों में जल उपलब्धता बनी रहती है
राजस्थान और हरियाणा जैसे राज्य, जहाँ वर्षा सीमित है, वहाँ अरावली की भूमिका जल जीवन रेखा जैसी है।
केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) की रिपोर्ट के अनुसार:
अरावली क्षेत्र में खनन और वनों की कटाई के कारण भूजल स्तर में खतरनाक गिरावट देखी जा रही है।
दिल्ली-NCR में जल संकट का एक बड़ा कारण अरावली की प्राकृतिक जल-संग्रह प्रणाली का नष्ट होना है।
3. जैव विविधता और वन्य जीवों का संरक्षण
अरावली पर्वतमाला भारत के सबसे अधिक अवमूल्यित जैव विविधता क्षेत्रों में से एक है। यहाँ पाई जाती हैं:
300+ पौधों की प्रजातियाँ
तेंदुआ, सियार, नीलगाय, लोमड़ी
अनेक प्रवासी व स्थानीय पक्षी
अरावली राजस्थान–हरियाणा–दिल्ली के बीच वन्य जीव गलियारे (Wildlife Corridor) का काम करती है।
इसके टूटने के परिणाम:
वन्य जीवों का प्राकृतिक आवास खत्म
मानव–वन्य जीव संघर्ष में वृद्धि
जैव विविधता का स्थायी नुकसान
यह वही गलती है जो हमने पहले ही कई वनों के साथ की है — और अब उसकी कीमत चुका रहे हैं।
4. जलवायु नियंत्रण और प्रदूषण में कमी
अरावली क्षेत्र के वन:
कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करते हैं
स्थानीय तापमान को नियंत्रित रखते हैं
दिल्ली-NCR में धूल और प्रदूषण को कुछ हद तक रोकते हैं
IIT दिल्ली और TERI के अध्ययनों के अनुसार:
अरावली के जंगल दिल्ली के लिए “ग्रीन लंग्स” की तरह कार्य करते हैं।
दिल्ली में बढ़ते तापमान, हीटवेव और जहरीली हवा के पीछे अरावली का क्षरण एक छुपा लेकिन बड़ा कारण है।
5. मानव गतिविधियाँ: सबसे बड़ा खतरा
आज अरावली का सबसे बड़ा दुश्मन प्रकृति नहीं, बल्कि मानव लालच है:
अवैध खनन
रियल एस्टेट और फार्महाउस
जंगलों की अंधाधुंध कटाई
कमजोर सरकारी क्रियान्वयन
सुप्रीम कोर्ट द्वारा कई बार प्रतिबंध लगाने के बावजूद, खनन आज भी जारी है — अक्सर प्रशासन की आँखों के सामने।
यहाँ समस्या कानून की नहीं, इच्छाशक्ति की है।
6. भविष्य की चेतावनी
यदि अरावली को नहीं बचाया गया:
उत्तर भारत में जल संकट स्थायी होगा
कृषि उत्पादन घटेगा
शहर और अधिक असहनीय होंगे
आने वाली पीढ़ियों के पास केवल रिपोर्ट और पछतावा बचेगा
पर्यावरण इतिहास साफ बताता है:
जो सभ्यताएँ प्रकृति को नज़रअंदाज़ करती हैं, वे ज्यादा समय तक टिकती नहीं।
निष्कर्ष
अरावली को बचाना कोई पर्यावरणीय नारा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अस्तित्व का प्रश्न है।
यह पर्वतमाला अगर कमजोर हुई, तो उसके प्रभाव केवल जंगलों तक सीमित नहीं रहेंगे — वे पानी, हवा, भोजन और जीवन तक पहुँचेंगे।
अब सवाल यह नहीं है कि अरावली क्यों ज़रूरी है।
सवाल यह है कि हम कब तक आँखें बंद रखेंगे?
संदर्भ / स्त्रोत (Sources)
Geological Survey of India (GSI) – Aravalli Craton Studies
Central Ground Water Board (CGWB) – Groundwater Depletion Reports
UNEP (United Nations Environment Programme) – Desertification in South Asia
TERI (The Energy and Resources Institute) – Aravalli Biodiversity & Climate Studies
Supreme Court of India Judgments on Aravalli Mining
MoEFCC (Ministry of Environment, Forest and Climate Change), Govt. of India
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