छत्तीसगढ़ महतारी न केवल प्रदेश की सांस्कृतिक पहचान है, बल्कि यह छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन का प्रतीक भी बन चुकी है। इस प्रतिमा ने आंदोलनकारियों को एकजुट किया और आम जनता को भावनात्मक रूप से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि, वर्तमान में कुछ लोग इसका उपयोग राजनीतिक लाभ के लिए कर रहे हैं, लेकिन शायद उन्हें इसके ऐतिहासिक महत्व और पीछे छिपी कहानी का सही ज्ञान नहीं है।
छत्तीसगढ़ महतारी स्थापना और इतिहास
वर्ष 1998 में जब राज्य निर्माण आंदोलन चरम पर था, तब रायपुर के घड़ी चौक पर छत्तीसगढ़ महतारी की पहली मूर्ति दाऊ आनंद अग्रवाल ने स्थापित की थी। इस समय रायपुर के कलेक्टोरेट, घड़ी चौक और अन्य प्रमुख स्थानों पर धरने और प्रदर्शन रोज़ाना होते थे।
प्रतिमा की स्थापना का उद्देश्य केवल मूर्ति लगाना नहीं था, बल्कि आंदोलन को एक पहचान देना और लोगों में ऊर्जा और उत्साह भरना था। इतिहासकारों के अनुसार, घड़ी चौक उस समय आंदोलन का सबसे बड़ा केंद्र था और दाऊ आनंद अग्रवाल लगातार धरने में शामिल रहते थे।
छत्तीसगढ़ महतारी की पहली पेंटिंग
मूर्ति से पहले वर्ष 1992 में ललित मिश्रा ने छत्तीसगढ़ महतारी की पहली पेंटिंग बनाई थी। यह चित्र आंदोलनकारियों के लिए प्रेरणा और दिशा का स्रोत बन गया। प्रतिमा बनाने में माता लक्ष्मी, दुर्गा और सरस्वती की पारंपरिक छवियों का भी उपयोग किया गया।
प्रतिमा की विशेषताएं
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प्रतिमा चार भुजाओं वाली थी।
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पहली भुजा आशीर्वाद देने के लिए उठाई गई थी।
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दूसरी भुजा में हंसिया और धान की बालियां दर्शाई गई थीं, जो प्रदेश की कृषि संस्कृति का प्रतीक हैं।
राज्य निर्माण के बाद क्या हुआ ?
वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद प्रतिमा थोड़े समय के लिए उपेक्षित हो गई थी। 2021 में युवा समूहों, विशेषकर महतारी सेवा रायपुर टीम, ने इसकी देखभाल और संरक्षण की जिम्मेदारी ली। आज घड़ी चौक पर छत्तीसगढ़ महतारी का मंदिर स्थापित है और गुरुवार एवं रविवार को नियमित रूप से पूजा-अर्चना की जाती है।
आधुनिक युग में महतारी की तस्वीर
वर्तमान में सरकारी कार्यालयों और कार्यक्रमों में प्रयुक्त छत्तीसगढ़ महतारी की तस्वीर 2018 में कवि ईश्वर साहू ‘बंधी ने डिजिटल रूप में तैयार किया। वर्ष 2022 में राज्य सरकार ने इसे सभी शासकीय कार्यालयों में प्रमुख स्थान देने का निर्णय लिया, जिससे यह राज्य की सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न हिस्सा बन गई।
