लोहे के कढ़ाईनुमा आकार में मोटा चमड़ा मढ़ा जाता है। एवं चमड़े को रस्सी से ही खींचकर कसा जाता है। यह गड़वा बाजा साज का प्रमुख वाद्य है।
लोहे के बर्तन में आखरी सिरे पर छेद होता है, जिस पर बीच-बीच में अंडी तेल डाला जाता है एवं छेद को कपड़े से बंद कर दिया जाता है। ऊपर भाग में खखन तथा चीट लगाया जाता है। टायर के टुकड़ों का बठेना बनाया जाता है, जिसे पिट-पिट कर बजाया जाता है एवं इसे बजाने वाले को निशनहा कहते हैं।
आदिवासी क्षेत्रों में इसे 'सिंग बाजा' भी कहते क्यों की इस वाद्ययंत्र पर बारह सींगा जानवर का सींग भी लगा दिया जाता है।
लोहे के बर्तन में आखरी सिरे पर छेद होता है, जिस पर बीच-बीच में अंडी तेल डाला जाता है एवं छेद को कपड़े से बंद कर दिया जाता है। ऊपर भाग में खखन तथा चीट लगाया जाता है। टायर के टुकड़ों का बठेना बनाया जाता है, जिसे पिट-पिट कर बजाया जाता है एवं इसे बजाने वाले को निशनहा कहते हैं।
आदिवासी क्षेत्रों में इसे 'सिंग बाजा' भी कहते क्यों की इस वाद्ययंत्र पर बारह सींगा जानवर का सींग भी लगा दिया जाता है।