पुनः भोसले शासन ( छत्तीसगढ़ ) 1830 - 1854


भारत के गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिंग के काल में अंग्रेजो और मराठा रघुजी तृतीय के मध्य 13 दिसंबर 1826 ई. को संधि हुई जिसके अनुसार अंग्रेजो ने सिर्फ नागपुर जिले के क्षेत्र को बतौर प्रयोग रघुजी तृतीय को सौंपा गया। इस समय छत्तीसगढ़ के अधीक्षक कैप्टन सैण्डिस थे। इस संधि के तीन वर्ष बाद अंग्रेजो और तत्कालीन रेसीडेंट विल्डर के मध्य संधि हुई, 27 दिसंबर 1829 में रघुजी तृतीय को सम्पूर्ण क्षेत्र का शासन सौप दिया गया। और ब्रिटिश संरक्षण के अधीन मराठा शासन का अंत हुआ।

15 जनवरी 1830 को गवर्नर जनरल के स्वीकृति के बाद इस क्षेत्र से ब्रिटिश रेजिडेंट का प्रभाव हट गया इसके बाद 6 जून 1830 को तत्कालीन अधीक्षक क्राफर्ड ने छत्तीसगढ़ का शासन भोसले द्वारा नियुक्त प्रथम जिलेदार को शासन भार सौप दिया और छत्तीसगढ़ में पुनः भोसले शासन की स्थापना हुई।

रघुजी तृतीय ने छत्तीसगढ़ का शासन जिन अधिकारियों के माध्यम से किया वे 'जिलेदार' कहलाये। रायपुर को जिलेदारो का मुख्यालय बनाया गया।

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पुनः भोसले शासन के दौरान छत्तीसगढ़ के लिए नियुक्त किये गए जिलेदारो के नाम:-
1) कृष्णा राव अप्पा
2) अमृत राव
3) सदरुद्दीन
4) दुर्गा प्रसाद
5) इंटुक राव
6) सखाराम बापू
7) गोविंद राव
8) गोपाल राव - अंतिल जिलेदार

धमधा क्षेत्र के गोड़ राजा के विद्रोह को शांत किया। मराठी और हिंदुस्तानी को राजभाषा का दर्जा दिया गया। 1853 ई. में रघुजी तृतीय की मृत्यु के बाद लार्ड डलहौजी ने राज्य को हड़प लिया।

प्रमुख घटनाएं:-
1)मुल्तानी ठगों का दमन:
कैप्टन स्लीमन को ठगों के दमन हेतु सामान्य अधीक्षक नियुक्त किया गया था। जिन्होंने सफलता पूर्वक ठगों का दामन किया। इन मुल्तानी ठगों के नेता सलावत, प्यारे जमादार एवं उदहुस्न थे। सुरुवात में रघुजी तृतीय प्रत्यक्ष रूप से सहयोग नहीं दे पाए थे। बाद में अंग्रेजो को उनसे सहयोग प्राप्त हुआ।

2) नर-बलि प्रथा का अंत:
बस्तर और करौद जमींदारी क्षेत्र में जनजतियो में नरबलि की प्रथा थी। जिसे ब्रिटिश प्रतिनिधि कर्नल कैम्पबेल के माध्यम से समाप्त किया गया।

3) सती प्रथा का अंत:
विलियम बैंटिक के शासन काल में भारत में सती प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया गया। 4 सितंबर 1829 को सती प्रथा के उन्मूलन हेतु आदेश भेजा गया, यह आदेश राज्य में 1831 को पारित हुआ।

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