प्रतीकात्मक तस्वीर |
भारत में अनेक स्थानों से शिलालेख एवं स्तम्भ लेख प्राप्त हुए हौ जिनसे भारत के स्वर्णिम इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त होती है, परंतु सम्पूर्ण भारतवर्ष में केवल एक काष्ठ स्तम्भ ( लकड़ी का खंभा)प्राप्त हुआ है। यह काष्ठ स्तम्भ छत्तीसगढ़ के वर्तमान सक्ती जिले के मालखरौदा तहसील के किरारी गांव से प्राप्त हुआ है, जिस वजह से इसे किरारी काष्ठ स्तम्भ कहते है। यह भारत का इकलौता काष्ठ स्तंभ है जिसकी खोज वर्ष 1921 में की गई थी।
किरारी काष्ठ स्तम्भ की खोज अप्रैल, 1921 में हीराबांध तालाब से हुई थी। वर्ष 1921 में तालाब के सुख जाने पर खाद के लिए तालाब के मिट्टी को निकालने के दौरान इस स्तम्भ की प्राप्ति हुई। लेकिन तालाब से निकलने पर यह स्तम्भ सुख गया, जिस वजह से इसमे लिखित अभिलेख खराब हो गया। गांव वालों ने इसे वापस पानी मे डालना ही सही समझा, परंतु गांव के पुरोहित श्री लक्ष्मी प्रसाद उपाध्याय ने इस स्तम्भ की उपयोगिता को समझते हुए और स्तम्भ में उत्कीर्ण अक्षरों की कागज में एक प्रतिलिपि बना ली।
यह सातवाहन कालीन अभिलेख है। इस स्तम्भ की ऊंचाई 13 फ़ीट 9 इंच थी। स्तम्भ के ऊपरी हिस्से में कलश था(1 फीट 2इंच), जो एक सकरे गर्दन से शेष स्तम्भ से जुड़ा हुआ था। बाद में कलश वाले हिस्से को शेष स्तम्भ से काट दिया गया, जो वर्तमान में महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय में सुरक्षित है। यह स्तम्भ "बीजा-साल" की लकड़ी का बना है, अभिलेख की भाषा सातवाहन कालीन "प्राकृत" तथा लिपि "ब्राम्ही" है।
लेख अब काफी नष्ट हो चुका है इसमें अनेक शासकीय अधिकारियों के नाम और पदनाम उल्लेखित हैं। पदनामों में से बहुतेक का उल्लेख कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी मिलता है।
उदाहरण के लिए
- वीरपालित और चिरगोहक नमक नागररक्षी(कोतवाल)
- वामदेय नामक सेनापति
- खिपत्ति नामक प्रतिहार(दोवरिक)
- नागवंशीय हेअसि नामक गणक(लेखपाल)
- घरिक नामक गृहपति
- असाधिक नामक भाण्डागारिक(संग्रहागार का अधिकारी) हस्त्यरोह,अश्वारोह, पादमलिक(पुरोहित या पंडा)रथिक,
- महानसिक(रसोई संबंधी प्रबंध करने वाला),
- हस्तिपक, धावक(आगे-आगे दौड़ने वाला),
- सौगंधक ( शपथ दिलाने वाला ), गोमांडलिक, यानशालायुधगारिक, प्लवीथिदपालिक, लेखहारक( राजकीय दस्तावेजों को संरक्षित करने वाला),
- कुलपुत्रक (गृह निर्माण करने वाला राज मिस्त्री/अभियंता )
- महासेनानी ( सेना का सर्वोच्च अधिकारी)।
इन पदाधिकारियों का एक साथ इस लेख में उल्लेख होने से अनुमान किया जा सकता है कि प्रस्तुत स्तम्भ अवश्य ही किसी बड़े समारोह जैसे कि यज्ञ के आयोजन के अवसर पर खड़ा किया गया था और उस आयोजन को करने वाला राजा शक्तिशाली रहा होगा। इस वजह से इसे यज्ञ स्तम्भ भी कहा जाता है।
किरारी काष्ठ स्तम्भ के अभिलेख का सर्वप्रथम अध्ययन डॉ हीरानंद शास्त्री ने किया। यह अध्ययन एपिग्राफिका इंडिका (1925-26) में प्रकाशित कराया गया था बाद में बालचंद जैन ने उत्कीर्ण लेख में इसका देवनागरी में प्रकाशन वर्ष 1961 में किया।