भारत में प्रतिवर्ष 14 सितंबर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य हिंदी भाषा को बढ़ावा देना और उसके महत्व को पहचानना है। 14 सितंबर 1949 को भारतीय संविधान सभा ने हिंदी को देवनागरी लिपि में भारत की राजभाषा के रूप में अपनाया था। इसे लेकर विभिन्न क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर समारोह और कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
संविधान सभा का निर्णय: 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने हिंदी को देवनागरी लिपि में भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। यह निर्णय आसान नहीं था, क्योंकि उस समय कई भाषाओं के समर्थक थे जो अपनी भाषा को राजभाषा बनाना चाहते थे।
14 सितंबर का चयन : हिंदी के लिए 14 तारीख का चुनाव खुद देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने किया था। वर्ष 1918 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इंदौर में आयोजित हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी भाषा को राजभाषा बनाने पर जोर दिया था और इसे जनमानस की भाषा भी कहा था।
हिंदी के समर्थक: हिंदी को राजभाषा बनाने का मुख्य उद्देश्य था कि यह भाषा भारत के एक बड़े हिस्से में बोली और समझी जाती है। हिंदी के समर्थकों का मानना था कि हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बनाना देश की एकता और अखंडता को मजबूत करेगा।
मुंशी-अयंगर फॉर्मूला: यह फॉर्मूला संविधान सभा के सदस्यों केएम मुंशी और एन गोपालस्वामी अयंगर द्वारा प्रस्तावित किया गया था, जिसने हिंदी को राजभाषा बनाने के साथ-साथ अंग्रेजी को भी एक सहायक भाषा के रूप में रखा। इस समझौते के तहत हिंदी को संघीय सरकार की "आधिकारिक भाषा" घोषित किया गया और अंग्रेजी को "सहायक भाषा" के रूप में एक स्थान मिला।
अनुच्छेद 343-351: संविधान के अनुच्छेद 343 से 351 तक हिंदी को राजभाषा के रूप में स्थापित किया गया। साथ ही, यह भी प्रावधान किया गया कि अंग्रेजी का उपयोग अगले 15 वर्षों तक सरकारी कार्यों में होता रहेगा।
वर्ष 1965 का विवाद: जब 15 साल की समय सीमा समाप्त हुई, तो हिंदी को सरकारी कामकाज की एकमात्र भाषा बनाने की कोशिश की गई, लेकिन दक्षिण भारतीय राज्यों ने इसका विरोध किया। इसके परिणामस्वरूप, अंग्रेजी को "भारत की वास्तविक औपचारिक भाषा (de facto formal language of India)" के रूप में बनाए रखने का निर्णय लिया गया।