औरंगज़ेब के शासनकाल में मोतीराम मेहरा एक जलवाहक थे, जो गुरु गोबिंद सिंह जी के गंगू बहनिया वाले क़ैदखाने में तैनात थे।
वर्ष 1905 में जब फ़तेहगढ़ में कैद गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों, साहिबज़ादा ज़ोरावर सिंह (उम्र 9 वर्ष) और साहिबज़ादा फतेह सिंह (उम्र 7 वर्ष) को कैद किया गया था और यह आदेश दिया गया था कि कोई भी इन्हें भोजन या वस्त्र नहीं देगा, तब उनके प्रति सहानुभूति दिखाने के लिए मोतीराम ने अपनी जान जोखिम में डाली, और दो दिनों तक दूध पहुंचाया।
मोतीराम मेहरा द्वारा किये गए इस कार्य के बारे में जब वजीर खां को पता चला तब इस “ग़ुनाह” के लिए मोतीराम मेहरा के 7 वर्ष के बेटे और 70 वर्ष की माँ सहित पूरे परिवार को मौत की सज़ा दी गई।
