झारखंड की महिला स्वतंत्रता सेनानी



भारत की स्वतंत्रता संग्राम में समाज के प्रत्येक वर्ग ने महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिसमें झारखंड राज्य की महिलाएं भी शामिल थीं। ये महिलाएं स्वतंत्रता के लिए लड़ीं और अपने साहस, संकल्प, और समर्पण से न केवल अपने राज्य बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा स्रोत बनीं। यहां झारखंड की कुछ प्रमुख महिला स्वतंत्रता सेनानियों का उल्लेख किया जा रहा है जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सुशीला समद
सुशीला समद भारत की पहली आदिवासी हिंदी विदुषी थीं। उनका जन्म 7 जून 1906 को झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के चक्रधरपुर क्षेत्र में एक मुंडा आदिवासी परिवार में हुआ था। उन्होंने प्रयाग महिला विद्यापीठ, बनारस से हिंदी की पढ़ाई की थी। सुशीला समद न केवल एक कवयित्री, पत्रकार, संपादक और प्रकाशक थीं, बल्कि एक स्वतंत्रता सेनानी भी थीं। वे महात्मा गांधी की एकमात्र आदिवासी महिला "सुराजी" (स्वतंत्रता सेनानी) थीं। उन्होंने 1925 से 1930 तक साहित्यिक-सामाजिक पत्रिका "चांदनी" का संपादन और प्रकाशन किया, और 1935 में अपनी कविता संग्रह "प्रलाप" और 1948 में "सपनों का संसार" प्रकाशित किया। उनका निधन 10 दिसंबर 1960 को हुआ।

सरस्वती देवी
सरस्वती देवी का जन्म 5 फरवरी 1901 को झारखंड में हुआ था। वे उर्दू, फारसी, और अरबी भाषा के विद्वान राय विष्णु दयाल लाल सिन्हा की पुत्री थीं। मात्र तेरह साल की उम्र में उनका विवाह हजारीबाग के केदारनाथ सहाय से हुआ। सरस्वती देवी 1916-17 में स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ीं और 1921 में गांधीजी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया, जिसके लिए उन्हें हजारीबाग सेंट्रल जेल में बंद कर दिया गया। जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी पूरी जान लगा दी। 10 दिसंबर 1958 को 57 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया।

बख्तावर देवी
बख्तावर देवी झारखंड की एक महत्वपूर्ण स्वतंत्रता सेनानी थीं। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई और अपने साहस और संघर्ष से लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाई।

ऊषा रानी मुखर्जी
ऊषा रानी मुखर्जी ने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सक्रिय भूमिका निभाई। उन्हें इस आंदोलन में भाग लेने के कारण गिरफ्तार कर छह महीनों के लिए भागलपुर जेल में बंद कर दिया गया था। जेल से रिहा होने के बाद, उन्होंने संताल परगना क्षेत्र में स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

फूलेन देवी
फूलेन देवी झारखंड की एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने स्थानीय लोगों की आवाज उठाई और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अपने साहस और समर्पण से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

बिरजी मिर्धा
बिरजी मिर्धा स्वतंत्रता सेनानी हरिहर मिर्धा की पत्नी थीं। उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया। 28 अगस्त 1942 को ब्रिटिश सेना ने उन्हें गोली मारकर हत्या कर दी।

फाल्गुनी देवी
फाल्गुनी देवी झारखंड के स्वतंत्रता संग्राम में अपने साहस और समर्पण के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्थानीय लोगों को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

देवमनिया भगत
देवमनिया भगत गुमला जिले के बभुरी गांव की रहने वाली थीं। वे जतरा भगत की समकालीन थीं और ताना भगत आंदोलन में सक्रिय थीं। जतरा भगत के जेल जाने और उनकी मृत्यु के बाद, देवमनिया ने आंदोलन की कमान संभाली और आंदोलन को आगे बढ़ाया।

राजकुमारी सरोज दास
राजकुमारी सरोज दास पलामू क्षेत्र से स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय थीं। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जपला सिमेंट फैक्ट्री में मजदूरों और किसानों को संगठित कर ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।