7/10/2018

कोंडागाँव जिला - Kondagaon Jila

यह जिला दिनांक 01 जनवरी 2012 को अस्तित्व में आया। मुख्यमंत्री रमन सिंह के द्वारा स्वतंत्रता दिवस 2011 के अवसर पर की गई घोषणा के अनुरूप प्रदेश में 09 राजस्व जिलों का गठन किया गया। इन्हीं 09 जिलों में से एक कोण्डागांव जिला है।
2011 की जनगणना के अनुसार यह छत्तीसगढ़ का सर्वाधिक स्त्री-पुरुष अनुपात ( 1033:1000 ) वाला जिला है।

इतिहास एवं नामकरण:
कोंडागांव का प्राचीन नाम कोण्डानार था। बताया जाता है कि मरार लोग गोलेड गाड़ी में जा रहे थे, तब कोण्डागांव के वर्तमान गांधी चौक के पास पुराने नारायणपुर रोड से आते हुए कंद की लताओं में उनकी गाड़ी फंस गयी और उन्हे रात को वहीं विश्राम करना पड़ा। रात्री में उनके प्रमुख को स्वप्न आया। स्वप्न में देवी ने उन्हें यहीं बसने का निर्देष दिया। उन्होंने उस स्थान की भूमि को अत्यंत उपजाऊ देखकर देवी के निर्देशानुसार यहीं बसना उचित समझा। उस समय इसे कान्दानार (कंद की लता आधार पर) प्रचलित किया गया, जो कालान्तर कोण्डानार बन गया।


नदी:
नारंगी नदी इस जिले से होकर गुजरती है। इस नदी के किनारे पर्यटन स्थल एवं कोंडागांव बसा हुआ है।
पावड़ा नदी।

पर्यटन स्थल
कोपाबेड़ा स्थित शिव मंदिर, मुलमुला, आराध्य माँ दंतेष्वरी - बडे़डोंगर, आलोर, केशकाल की घाटी, तेलिन माता मंदिर, टाटामारी, गढ़ धनोरा, भोंगापाल, जटायु शिला ( फरसगांव के समीप )


टाटामारी :
टाटामारी सुरडोंगर केषकाल में पौराणिक मान्यताओें पर अखण्ड ऋषि के तपोवन पर स्थापित है। बारह भंवर केशकाल घाटी के ऊपरी पठार पर पिछले कर्इ वर्षो से दीपावली लक्ष्मी पूजा के दिन विधि-विधान से श्रद्धालुजन पूजा अर्चना सम्पन्न करते आ रहें है। यहां लोग सुरडोंगर तालाब भंगाराम मार्इ मंदिर होते टाटामारी ऊपरी पहाड़ी पठार पर महालक्ष्मी शक्ति पीठ स्थल तक पहुंचते हैं।

जटायु शिला:
जटायु शिला फरसगांव के समीप कोण्डगांव फरसगांव मुख्य मार्ग से पश्चिम दिशा में 3 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां पहाड़ी के ऊपर बड़ी-बड़ी शिलाएं है। शिलाओं तथा वाच टावर से दूर-दूर तक मनोहारी प्राकृतिक दृष्य दिखायी देते हैं। यहाँ मान्यता है कि इसी स्थान पर रामायण काल में सीता जी के हरण के दौरान रावण एवं जटायु के मध्य संघर्श हुआ था।

शैल चित्र: 
इनका पाया जाना कोण्डागांव जिले को एक विशिष्ट पहचान देता है। ये शैल चित्र लिंगदरहा, लहू हाता, लयाह मटटा, मुत्ते खड़का, सिंगार हुर में पाए गए हैं। जो व्यापक शोध का विषय हैं।

मुलमुला/मूसर देव: 
कोण्डागांव में चिपावण्ड ग्राम से लगभग 5 किमी की दूरी पर ग्राम मुलमुला स्थित है। इस गांव से लगभग 3-4 कि.मी. अंदर वन क्षेत्र में मुलमुला एवं काकरावेड़ा जंगल में मूसर देव नामक स्थल है। वर्तमान में यहां कर्इ प्राचीन टीले हैं। इन टीलों के पास ही एक शिवलिंग है। चूंकि यह शिवलिंग लम्बार्इ में मूसर की आकृति का है जिसके कारण स्थानीय लोग इसे मूसर देव के नाम से जानते है।